1. विविधशास्त्रीय-विद्वतसूचीनिर्माणनिमित्तम् आमन्त्रणम् (Invitation for Scholars Data Bank) 2. परिसराणाम् आदर्शमहाविद्यालयानाञ्च कृते 2023-24 वर्षस्य सङ्गोष्ठी कार्यशालादि निमित्तम् आवेदनम् ॥ Application for Financial Assistance for Holding Seminar/Conference/Workshop by Campuses and ASMs Year 2023-24

केन्द्रीय-संस्कृत-विश्वविद्यालय के प्रकाशन एवं कार्यक्रम अनुभाग द्वारा विविधसम्पादनादि कार्यों में सहयोग निमित्त विभिन्न प्राच्य एवं आधुनिक शास्त्रों के अनुभवी विद्वानों की एक सूची बनाई जा रही है। इस सन्दर्भ में आप से अपेक्षा की जाती है कि सन्दर्भित सूचनाओं की प्रविष्टि के साथ आवेदन करें एवं अन्य विद्वानों को भी प्रेरित करें।

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परिचयः : केन्द्रीयसंस्कृतविश्वविद्यालयस्य ' प्रकाशनम् - कार्यक्रमः ' इत्येषः प्रभागः प्राचीनानाम् अर्वाचीनानाम् ग्रन्थानां पाण्डुलिपीनां शोधकार्याणां च प्रोत्साहनं कुर्वन् अस्ति। देशस्य विभिन्नेषु स्थानेषु अस्य विश्वविद्यालयस्य विशिष्टाः परिसराः सन्ति। एतेषु परिसरेषु प्रयागराजस्थः गङ्गानाथ झा परिसरः शोधकार्याणां प्रोन्नयनाय निर्दिष्टः वर्तते। प्राक्शोधपाठ्यक्रमाणां सञ्चालनात् आरभ्य शोधसम्बद्धानि सर्वाणि कार्याणि अस्मादेव सम्पादयति विश्वविद्यालयः। विश्वविद्यालयस्य प्रकाशनानि सुलभतया क्रेतुं विक्रयकेन्द्राणि आभारतं संस्थापितानि सन्ति। अन्तर्जालमुखेन ( Online) अपि क्रेतुम् अवसरः कल्पितः वर्तते। विशिष्टाभिनवग्रन्थमालिकाभिः प्राचीनपुस्तकमुद्रणैः पाण्डुलिपीनां शोधकार्याणां च प्रकाशनादिभिश्च विश्वविद्यालयः प्राचीनभाषायाः व्यापकं प्रसारं करोति। एवमेव आभारतं व्याप्तानां संस्कृतच्छात्राणां प्रातिभवैविध्यप्रोत्साहनाय गुरुकुलस्तरात् राष्ट्रस्तरपर्यन्तं विशिष्टान् कार्यक्रमान् आयोजयति।अखिलभारतीयवाक्प्रतियोगिताः - अखिलभारतीयरूपकमहोत्सवः - युवमहोत्सवः अन्ताराष्ट्रियसङ्गोष्ठ्यः शास्त्रसभाः इत्येवं विशिष्टान् कार्यक्रमान् अयं विभागः आवर्षम् आभारतं च सफलतया समायोजयति। विश्वविद्यालयः शोधकार्येषु प्रकाशनेषु विविधकार्यक्रमेषु च सरलसंस्कृतेन सर्वविधकार्याणि सुलभतया सम्पादयति।
अस्य कार्याणि एवं प्रस्तोतुं शक्यन्ते- 1. शोधविमर्शनिमित्तं मानकमार्गदर्शनम् । 2. भारतीय प्राचीनशास्त्रसंरक्षणं सरलसंस्कृतमाध्यमेन मानकग्रन्थप्रकाशनञ्च। 3. संस्कृतस्य प्राचीनार्वाचीनग्रन्थानां पुरालिपीनाञ्च संरक्षणं तथा प्रकाशनम्। 4. सरलसंस्कृतमाध्यमेन विभिन्नग्रन्थशृङ्खलानां (यथा- सरलसंस्कृतेन सङ्क्षेपग्रन्थहारः) प्रकाशनम् । 5. भविष्यगतयोजनानां (यथा भूमिकासङ्ग्रहमाला, दीक्षापुस्तकयोजना तथा वाङ्मयप्रवेशिकाप्रभृतीनां) क्रियान्वयनम् । 6. भारतीयज्ञानपरम्परासम्बद्धविषयाणां (यथा दर्शन-व्याकरण-संगीत-राजनीति-चिकित्सा-वास्तुकला-धातुविज्ञान-नाटकप्रभृतीनां) आधुनिकप्रविधेः साहाय्येन विश्वजनमानसेभ्यः हस्तान्तरणम्। 7. प्राचीनभाषा-कला-सांस्कृतिकपरम्पराजन्यनिधीनां पोषणं-संरक्षणं-प्रकाशनं-विस्ताराश्च।

About :

Publications and Programme of Central Sanskrit University has been preserving and promoting historic and ancient Sanskrit language literature and manuscripts. Along with the publication of various books, it also helps to ensure that books are easily accessible to scholars; for this purpose, sales facility in different campus of this university both online and offline has been established. It is dedicated to fostering, presenting, and constitutionally preserving India's traditional language, arts and culture. Numerous traditional and artistic disciplines are taught to millions of students across its thirteen campuses along with headquarter office and different affiliated colleges in India. Along with this, emphasis is also placed on their ongoing artistic talent growth in line with the contemporary environment.
Its major roles are as follows: 1. To provide sstandard research and discussion guidelines 2. Preserving ancient Indian scriptures and publishing standard texts in simple Sanskrit. 3. Preserving and publishing ancient Sanskrit texts and epigraphs 4. Publication of various book series in simple Sanskrit, such as Saralsanskreten Sankshepgranthahar. 5. Carrying out future plans such as Bhumikasangrahamala, Deekshapustak Yojana, and Vangmay Praveshika, among others. 6. Using modern tools and techniques, bring Indian knowledge tradition subjects such as philosophy, grammar, music, politics, medicine, architecture, metallurgy, drama, and so on to the world public. 7. Preserving, preserving, publishing, and expanding ancient languages, arts, and cultural traditional heritage

परिचयः : केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का प्रकाशन एवं कार्यक्रम प्रभाग प्रारम्भ से ही संस्कृत के प्राचीन एवं अर्वाचीन ग्रन्थों, पुरालिपियों का संरक्षण एवं प्रकाशन करता आ रहा है। यह विविधग्रन्थों के प्रकाशन के साथ ही अध्येताओं को सहज रूप में ग्रन्थों की उपलब्धि को भी सुनिश्चित करता है इस निमित्त देश के विभिन्न स्थानों पर आनलाइन तथा आफलाइन विक्रय केन्द्र स्थापित किया गया है। प्रकाशन एवं कार्यक्रम विभाग भारत के प्राचीन भाषाओं कलाओं, सांस्कृतिक परम्पराजन्य विरासत को अक्षुण्ण रखते हुए उनके पोषण, संरक्षण, प्रकाशन एवं विस्तार हेतु कटिबद्ध है। मुख्यालय सहित सम्पूर्ण भारतवर्ष में इसके तेरह परिसरों तथा गुरुकुलस्तर से राष्ट्रस्तर के लक्षाधिक छात्रों को विभिन्न शास्त्रीय परंपराओं तथा कलाओं में प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसके साथ ही समसामयिक युगानुरूप उनके कला-कौशल के सतत विकास की ओर भी ध्यान दिया जारहा है।
इसका प्रमुख कार्य इस प्रकार है- 1. शोध एवं विमर्श हेतु मानक मार्गदर्शन 2. भारतीय प्राचीन शास्त्रों का संरक्षण एवं सरल संस्कृत के माध्यम से मानक ग्रन्थों का प्रकाशन। 3. संस्कृत के प्राचीन एवं अर्वाचीन ग्रन्थों, पुरालिपियों का संरक्षण एवं प्रकाशन 4. सरल संस्कृत माध्यम से विभिन्न ग्रन्थशृङ्खलाओं यथा- सरलसंस्कृतेन सङ्क्षेपग्रन्थहारः का प्रकाशन 5. भविष्यगत योजनाओं यथा भूमिकासङ्ग्रहमाला, दीक्षापुस्तकयोजना तथा वाङ्मयप्रवेशिका आदि का क्रियान्वयन 6. भारतीय ज्ञानपरम्परा सम्बद्ध विषयों यथा दर्शन, व्याकरण, संगीत, राजनीति, चिकित्सा, वास्तुकला, धातु विज्ञान, नाटक आदि को आधुनिक उपकरणों और तकनीकों की सहायता से विश्वजनमानस तक पहुंचाना। 7. प्राचीन भाषाओं कलाओं, सांस्कृतिक परम्पराजन्य विरासत को अक्षुण्ण रखते हुए उनके पोषण, संरक्षण, प्रकाशन एवं विस्तार


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